उत्तराखंड के जंगलो में नहीं थम रहा आग का कहर , जानवर पहुंचे बस्तियों में
जिले के अधिकांश जंगल अब भी आग से झुलस रहे है। चीड़ के जंगलों के अलावा चौड़ी पत्त्ती वाले वृक्षों के जंगल भी आग की लपटे देखी जा रही हैं। जिला मुख्यालय के निकट थलकेदार व उसके आसपास के जंगलों में तो आग शांत हो चुकी है परंतु नैनी-सैनी व सौड़लेख के जंगलों से अब भी धुंआ उठ रहा है।
उधर नेपाल सीमा से लगे झूलाघाट और जौलजीबी क्षेत्रों के जंगलो में आग लगी है। सामने नेपाल के जंगलों में लगी आग के चलते घाटी वाले क्षेत्रों में धुंध छायी हुई है। जिसके कारण आंखों में जलन की शिकायत लोगों ने की है। इस बीच जिलाधिकारी के निर्देश के बाद राजस्व क्षेत्र में पटवारी चौकियों को भी क्रू स्टेशन बना दिया गया है। इसकी उपजिलाधिकारी निगरानी कर रहे हैं। जिस तरह जंगलों की आग फैली है उस पर अब लोगों का कहना है कि वर्षा होने पर ही जगलों की आग बुझ सकती है।
जंगलों में बढ़ती आग की घटनाओं के बीच वन विभाग असहाय नजर आ रहा है। हालांकि सीमित संसाधनों के साथ कई स्थानों पर विभागीय फील्ड स्टाफ द्वारा आग बुझाने के प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन तेजी से बढ़ती गर्मी के बीच जंगलों में धधक रही आग उनके लिए बड़ी चुनौती पेश कर रही है।
जानवर हुए आवारा
आग का कहर जंगलो में बढ़ता ही जा रहा है। लगभग 20 बार जंगल जल गए हैं। 21.55 हेक्टेयर वन भूमि को नुकसान हुआ है। जिसके कारण जंगली जानवरों ने गांव तथा शहरो में घुसना शुरू कर दिया है। बंदर प्रजाति सबसे अधिक नगरो में दाखिल हो गए हैं। जंगल जलने से जंगली जानवरों को पानी तक नहीं मिल रहा है। वह भोजन तथा पानी की तलाश में नगर तक पहुंचने लगे हैं।
गेहूं कटने के बाद खेतों में गिरे अनाज से भूख मिटा रहे हैं। वहीं, घरों की छतों पर लगी पानी की टंकियों को क्षतिग्रस्त कर पानी का जुगाड़ भी कर ले रहे हैं। जिससे लोगों की दिक्कतें बढ़ गईं हैं। वहीं, जंगली सूअर, गुलदार, मुर्गियां आदि भी गांव तथा शहर के आसापस दिखाई देने लगे हैं। वृक्ष प्रेमी किशन मलड़ा ने कहा कि जंगलों की आग को रोकना प्राथमिकता होनी चाहिए।