सुप्रीम कोर्ट ने सुनाए दो बड़े फैसले, प्राइवेट और सरकारी कर्मचारियों पर पड़ेगा असर
दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछले दो दिनों में दो बड़े फैसले सुनाए गए है जो कर्मचारियों के हक से जुड़े हुए है. ऐसे कई कर्मचारी हैं जो ऐसे मामलों में कोर्ट कचहरी की दौड़ धूप करते रहते हैं. सुप्रीम कोर्ट की ओर से बुधवार को कहा गया कि किसी मामले में कोई सूचना छिपाना, झूठी जानकारी और FIR की जानकारी नहीं देने का मतलब यह नहीं है कि नौकरी देने वाला मनमाने ढंग से कर्मचारी को बर्खास्त कर सकता है
जब ट्रेनिंग के दौरान पता चली FIR की बात
सुप्रीम कोर्ट में पवन कुमार की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई हुई. पवन की रेलवे सुरक्षा बल में बतौर कांस्टेबल नौकरी लगी थी. जब पवन की ट्रेनिंग शुरू थी तो उसे इस आधार पर एक आदेश से हटा दिया गया कि कैंडिडेट ने यह खुलासा नहीं किया कि उसके खिलाफ FIR दर्ज की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस व्यक्ति ने जानकारी को छिपाया है या गलत घोषणा की है, उसे सेवा में बनाये रखने की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है लेकिन कम से कम उसके साथ मनमाने ढंग से व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए
24 साल बाद कर्मचारी को नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केरल के एक टीचर के मामले में फैसला सुनाया. मामला यह था कि टीचर ने साल 1973 में स्टडी लीव ली लेकिन उन्हें इंक्रीमेंट देते समय उस अवकाश की अवधि पर विचार नहीं किया गया था. 24 साल बाद 1997 में उन्हें नोटिस जारी किया गया और 1999 में उनके रिटायर होने के बाद उनके खिलाफ वसूली की कार्यवाही शुरू की गई. टीचर ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन राहत नहीं मिली. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट की शरण ली. अपने पहले के फैसलों का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई सरकारी कर्मचारी, विशेष रूप से जो सेवा के निचले पायदान पर है, जो भी राशि प्राप्त करता है, उसे अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए खर्च करेगा.