दिल्ली : लड़की वालो ने बिना मांगे दहेज दिया तो दामाद ने नाराज होकर कर दिया केस
दिल्ली में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी के परिवार के खिलाफ बिना मांगे दहेज देने के लिए अपराधिक कार्रवाई की मांग करते हुए एक याचिका दायर की थी। कोर्ट ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया। शख्स अदालत को याचिका के पीछे की वजह को समझाने में असफल रहा।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश नवजीत बुद्धिराजा एक मजिस्ट्रेट अदालत के जुलाई 2022 के आदेश के खिलाफ व्यक्ति की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। मजिस्ट्रेट अदालत ने दहेज देने को लेकर व्यक्ति के सास-ससुर और साले के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने संबंधी उसके (व्यक्ति के) अनुरोध को खारिज कर दिया था। यह भी रिकॉर्ड में आया कि उस व्यक्ति पर पत्नी के परिवार द्वारा क्रूरता का मामला चल रहा था।
अदालत ने कहा, "जब तक मुकदमे के दौरान दोनों पक्षों द्वारा सबूत पेश नहीं किए जाते, दहेज की मांग की गई थी या नहीं इस पहलू पर प्रभावी ढंग से निर्णय नहीं लिया जा सकता है। संशोधनवादी (कुमार) का दावा है कि उन्होंने कभी भी दहेज की मांग नहीं की थी। इसके बाद भी उनके खाते में 25,000 रुपये और 46,500 रुपये की राशि भेजी गई। अपने हित को पूरा करने वाला बयान होगा।
पांच अक्तूबर को पारित एक आदेश में न्यायाधीश बुद्धिराजा ने कहा कि उसके ससुराल वालों ने पहले ही आईपीसी की धारा 498ए (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा एक विवाहित महिला के साथ क्रूरता करना) के तहत उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। अदालत ने व्यक्ति की शिकायत के संबंध में मजिस्ट्रेट की टिप्पणियों पर कहा कि ससुराल वालों ने एफआईआर दर्ज करते समय स्पष्ट रूप से स्वीकार किया था कि उन्होंने कुमार को दहेज दिया था और ऐसी स्वीकारोक्ति दहेज निषेध अधिनियम के तहत अपराध है।
अधिनियम की धारा 3 में दहेज लेने या देने पर दंड का प्रावधान है। अदालत ने आगे मजिस्ट्रेट की टिप्पणी दर्ज की कि कुमार ने इस तथ्य को छुपाया था कि उसकी पत्नी और ससुराल वालों ने एफआईआर में उसके खिलाफ "लगातार दहेज की मांग के गंभीर आरोप" लगाए थे।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश नवजीत बुद्धिराजा एक मजिस्ट्रेट अदालत के जुलाई 2022 के आदेश के खिलाफ व्यक्ति की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। मजिस्ट्रेट अदालत ने दहेज देने को लेकर व्यक्ति के सास-ससुर और साले के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने संबंधी उसके (व्यक्ति के) अनुरोध को खारिज कर दिया था। यह भी रिकॉर्ड में आया कि उस व्यक्ति पर पत्नी के परिवार द्वारा क्रूरता का मामला चल रहा था।
अदालत ने कहा, "जब तक मुकदमे के दौरान दोनों पक्षों द्वारा सबूत पेश नहीं किए जाते, दहेज की मांग की गई थी या नहीं इस पहलू पर प्रभावी ढंग से निर्णय नहीं लिया जा सकता है। संशोधनवादी (कुमार) का दावा है कि उन्होंने कभी भी दहेज की मांग नहीं की थी। इसके बाद भी उनके खाते में 25,000 रुपये और 46,500 रुपये की राशि भेजी गई। अपने हित को पूरा करने वाला बयान होगा।
पांच अक्तूबर को पारित एक आदेश में न्यायाधीश बुद्धिराजा ने कहा कि उसके ससुराल वालों ने पहले ही आईपीसी की धारा 498ए (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा एक विवाहित महिला के साथ क्रूरता करना) के तहत उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। अदालत ने व्यक्ति की शिकायत के संबंध में मजिस्ट्रेट की टिप्पणियों पर कहा कि ससुराल वालों ने एफआईआर दर्ज करते समय स्पष्ट रूप से स्वीकार किया था कि उन्होंने कुमार को दहेज दिया था और ऐसी स्वीकारोक्ति दहेज निषेध अधिनियम के तहत अपराध है।
अधिनियम की धारा 3 में दहेज लेने या देने पर दंड का प्रावधान है। अदालत ने आगे मजिस्ट्रेट की टिप्पणी दर्ज की कि कुमार ने इस तथ्य को छुपाया था कि उसकी पत्नी और ससुराल वालों ने एफआईआर में उसके खिलाफ "लगातार दहेज की मांग के गंभीर आरोप" लगाए थे।