क्या है नीरज चोपड़ा की जाती ? सबसे ज्यादा हो रही इंटरनेट पर सर्च
*उपेक्षा की शिकार, मेहनतकश रोड़ बिरादरी*
*- फिलहाल तीन बड़े खिलाड़ी, तीनों ही हरियाणा सरकार को पसंद नहीं*
*- विधायकों व आईएएस की भी होती अनदेखी*
*साभार : अजय दीप लाठर
टोक्यो ओलंपिक में भाला फेंक स्पर्धा में नीरज चोपड़ा के स्वर्ण पदक जीतते ही इंटरनेट पर लोगों ने उनकी जाति खोजनी शुरू कर दी। एक-दूसरे से फोन करके पूछा जाने लगा। पंजाबियों ने नीरज को पंजाबी चोपड़ा बताना शुरू कर दिया तो जाटों ने जाट चोपड़ा कहना शुरू कर दिया। कहीं-कहीं से दलित चोपड़ा होने की बात भी आने लगी, जबकि हकीकत में नीरज चोपड़ा रोड़ बिरादरी से हैं। रोड़ बिरादरी का मुख्य कार्य खेतीबाड़ी ही है। यानी, मेहनतकश किसान कौम है। सामान्य श्रेणी में आने वाली क्षत्रिय कौम है, जिसका गौरवशाली इतिहास रहा है। लेकिन, इस टटोलने के अभियान के बीच चौंकाने वाली बात तो यह पता चली कि रोड़ बिरादरी की हरियाणा सरकार लगातार उपेक्षा करती रही है। आज भी मौजूदा सरकार इस बिरादरी की उपेक्षा कर रही है।
देखा जाए तो रोड बिरादरी से हाल फिलहाल के तीन बड़े खिलाड़ी चर्चा में सामने आए। नीरज चोपड़ा ओलंपिक स्वर्ण पदक जीत कर सिरमौर बने हैं, तो सुरेंद्र कुमार पालड़ ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के उपकप्तान हैं। जबकि मनोज कुमार बॉक्सिंग रिंग में विरोधियों पर कड़े प्रहार कर चुके हैं। नीरज चोपड़ा की बात की जाए तो उन्हें शुरुआती दिनों में न तो पानीपत में किसी तरह की खेल सुविधा मिली और न ही पंचकूला में उनके लिए कोई खास इंतजाम हरियाणा सरकार कभी करवा पाई। न ही नीरज चोपड़ा को हरियाणा सरकार ने पहले कभी नौकरी ऑफर की। खेल को आगे बढ़ाने के लिए नीरज को भारतीय सेना में सिपाही के पद पर भर्ती होना पड़ा। सेना से मिली मदद, उपकरणों की बदौलत ही वे स्वर्णिम भाला फेंक सके।
हॉकी टीम के उपकप्तान सुरेंद्र कुमार पालड़ को भी हरियाणा सरकार से तो उपेक्षा ही मिलती रही है। पालड़ को हरियाणा से आज तक नौकरी हासिल नहीं हुई। वे अभी एफसीआई में मैनेजर के पद पर हैं, जबकि कांस्य पदक हासिल करने पर अब उनकी एजीएम के पद पर पदोन्नति की घोषणा हुई है।
बॉक्सर मनोज कुमार को आज तक जो भी मिला, कोर्ट ने दिलाया। हरियाणा सरकार ने न तो उनकी प्रतिभा के मुताबिक नौकरी दी और न ही उन्हें केंद्र सरकार ने अर्जुन अवॉर्ड दिया। अर्जुन अवॉर्ड लेने के लिए मनोज कुमार को दिल्ली हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी। हाईकोर्ट के आदेश पर उन्हें खेल सम्मान अर्जुन अवॉर्ड हासिल हुआ। मनोज से कम प्रतिभावान खिलाड़ियों को भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार ने डीएसपी भर्ती कर दिया। मनोज ने उन्हें डीएसपी बनाने का केस पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में किया हुआ है, जिस पर फैसला आना बाकी है। फिलहाल मनोज भारतीय रेलवे की अंबाला डिविजन में ओएसडी स्पोर्ट्स के पद पर तैनात हैं।
हालांकि, इससे पहले रोड़ बिरादरी से ही दिवंगत बलवंत सिंह बल्लू देशभर में वॉलीबॉल के भीष्म पितामह के तौर पर प्रसिद्ध हुए तो डॉ दलेल कई साल तक वॉलीबॉल की भारतीय टीम के कप्तान रहे। इसके अलावा 6 से अधिक अंतरराष्ट्रीय वॉलीबॉल खिलाड़ी भी रोड़ बिरादरी ने ही दिए हैं।
*उपेक्षित हैं एकमात्र आईएएस बलकार सिंह*
रोड़ समुदाय से ही यूपी कैडर के 2004 बैच के आईएएस अधिकारी डॉक्टर बलकार सिंह हैं। ये इस बिरादरी से एकमात्र आईएएस हैं, जिनका यूपीएससी में 24वां रैंक आया था। केंद्र में ज्वाइंट सेक्रेटरी की इंपेनलमेंट हो चुकी है। डॉक्टर बलकार सिंह उत्तरप्रदेश में कई बड़े जिलों के डीएम रह चुके। साल 2019 में हरियाणा आए तो उस समय यूपी में खनन महकमे के निदेशक थे। हरियाणा में भाजपा सरकार ने उन्हें प्रदेश के सबसे छोटे जिले का डीसी बना दिया। यही नहीं, करीब डेढ़ साल के अंदर उनका ईधर-उधर कम से कम 6 बार तबादला भी किया गया। सीनियर होते हुए भी कम महत्व की पोस्ट पर हरियाणा सरकार द्वारा उन्हें लगाया गया है।
*रोड़ बिरादरी की मंत्रिमंडल में भागीदारी नहीं*
राजनीतिक तौर पर देखें तो करनाल में मुख्यमंत्री मनोहर लाल की जीत में बड़ी भागीदारी रोड़ बिरादरी की रहती है। रोड़ बिरादरी के नेता समुदाय को बीजेपी के पक्ष में लामबद करते हैं, लेकिन बदले में उन्हें कुछ नसीब नहीं होता। देखा जाए तो फिलहाल घरौंडा विधानसभा क्षेत्र से विधायक हरविन्द्र कल्याण व पुंडरी से निर्दलीय विधायक रणधीर सिंह गोलन भी रोड़ समुदाय से ही हैं। मुख्यमंत्री के जिले से होने के बावजूद हरविन्द्र कल्याण पूरी तरह से अनदेखी के शिकार हैं, जबकि सरकार को समर्थन लेने के बदले रणधीर सिंह गोलन को कम महत्व के माने जाने वाले हरियाणा पर्यटन का चेयरमैन बनाया गया है। यानी, राजनीतिक तौर पर मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी न देकर इस समुदाय की अनदेखी की गई है। जबकि, समय-समय पर इस बिरादरी को सरकार भागीदारी देने की बात कहती है, लेकिन बाद में इनके साथ अनदेखी ही होती है।
*कभी रियासत चलाने वाली थी रोड़ बिरादरी*
रोड़ बिरादरी का इतिहास गौरवशाली रहा है। झज्जर के बादली में क्षत्रिय में शुमार रोड़ बिरादरी की रियासत थी। रोड़ समुदाय से आने वाले पत्रकार विनोद महला बताते हैं कि बादली रियासत के मुखिया माहिल बाघ महला होते थे। इनका प्रभाव फरीदाबाद-पलवल तक माना जाता था। रक्षाबंधन पर इनके यहां सभी हथियार शस्त्रगृह में रखने की परंपरा थी, ताकि सभी इनका पूजन कर सकें। इस परंपरा की जानकारी पुरोहितों ने कुतबुद्दीन एबक को दे दी, जिस पर 1208 ई. में बादली रियासत के निहत्थे लोगों पर धोखे से हमला किया गया। इस बड़े नरसंहार में भारी संख्या में जनहानि हुई। जो थोड़े से लोग बचे, वे यहां से अलग-अलग इलाकों में शिफ्ट हो गए। फिलहाल रोड़ बिरादरी के पश्चिमी उत्तरप्रदेश में करीब 58 गांव हैं तो हरियाणा के करनाल, कुरुक्षेत्र जिले में खासा प्रभाव है। पानीपत जिले में 7 गांव हैं तो सोनीपत जिले में भी दो गांव रोड़ बिरादरी के गिने जाते हैं। कैथल जिले में भी रोड़ बिरादरी के परिवार हैं, जो मुख्य तौर पर कृषि कार्य ही करते हैं।
*लेखक अजय दीप लाठर, वरिष्ठ पत्रकार एवं विश्लेषक हैं।*