कोर्ट की फटकार: DSP को ऐसी सजा मिले कि तस्करों को क्लीनचिट देने से पहले अधिकारी सौ बार सोचें

(K9 Media)
अदालत ने अफीम तस्कर को तीन वर्ष कैद व 10 हजार जुर्माने की सजा सुनाई। सजा सुनाने के दौरान कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की। तत्कालीन डीएसपी ने अफीम तस्कर को क्लीनचिट दी थी।
हरियाणा के फतेहाबाद में अदालत ने नशे का गढ़ बन रहे जिले में तस्करों पर पुलिस की मेहरबानी को लेकर कड़ी फटकार लगाई है। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुनील जिंदल ने टोहाना के तत्कालीन डीएसपी सुभाषचंद्र की जांच कार्रवाई पर तल्ख टिप्पणी की। न्यायाधीश ने कहा कि यदि अदालत इस मामले में आंख बंद करती है तो वह भी अपराध की सहभागी मानी जाएगी।
अदालत ने एसपी व हिसार रेंज के आईजी को फैसले की कॉपी भेज कर कहा है कि डीएसपी सुभाष चंद्र पर सख्त कार्रवाई कर तुरंत काम वापस लिया जाए, ताकि भविष्य में कोई अधिकारी यदि नशा तस्करों की मदद करने का विचार करें, तो वह सौ बार सोचे। वहीं, अदालत ने डीएसपी की जांच को पलटते हुए फतेहाबाद की चार मरला कॉलोनी निवासी नशा तस्कर इंद्रसेन को तीन वर्ष कैद व 10 हजार जुर्माने की सजा सुनाई है।
यह था मामला
सीआईए फतेहाबाद की टीम ने 13 दिसंबर 2016 को भूना मोड़ के पास ऑटो मार्केट में मैकेनिक इंद्रसेन को 500 ग्राम अफीम सहित पकड़ा था। टीम में थानेदार महेंद्र सिंह, एएसआई महाबीर सिंह, हेड कांस्टेबल राम अवतार, प्रदीप कुमार, राजेश कुमार, अनिल कुमार व चालक राजेंद्र शामिल थे। तत्कालीन शहर थानाध्यक्ष ने मौके पर सत्यापन किया। शहर पुलिस ने एनडीपीएस एक्ट के तहत केस दर्ज कर इंद्रसेन को अदालत में पेश किया।
अदालत ने इंद्रसेन को न्यायिक हिरासत में भेज दिया। इस बीच इंद्रसेन की पत्नी कांता देवी ने तत्कालीन एसपी को पत्र देकर कहा कि उसके पति को साजिश के तहत फंसाया गया है। इस मामले की नए सिरे से जांच हो। एसपी ने जांच टोहाना के तत्कालीन डीएसपी सुभाष चंद्र को सौंप दी।
डीएसपी ने इंद्रसेन के पक्ष में गवाही देने वाले गुरविंद्र पाल, संदीप, अमृतपाल, इंद्र सिंह, मनीष, हरबंस लाल, जसवीर सिंह और आरोपी इंद्रसेन की पत्नी कांता आदि को नोटिस देकर बुलाया। इन सभी ने बयान दिया कि इंद्रसेन को फंसाया गया है। इन बयानों के बाद डीएसपी ने मौके का मुआयना किया।
शहर थाने जाकर रिकॉर्ड देखकर थानाध्यक्ष को निर्देश दिए कि इंद्रसेन निर्दोष है, उसे नियम के मुताबिक डिस्चार्ज करवाया जाए और असली दोषी की तलाश की जाए। थानाध्यक्ष ने डीएसपी के निर्देश पर डिस्चार्ज रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी।
डिस्चार्ज रिपोर्ट देखकर तत्कालीन जज बोले, सात लोग कैसे झूठा केस बना सकते हैं
तत्कालीन अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश आरएस ढांडा ने जब यह रिपोर्ट देखी, तो वह हैरान रह गए। उन्होंने कहा कि रेड पार्टी में शामिल सात लोग कैसे झूठा मुकदमा बना सकते हैं। उन्होंने रेड में शामिल जांच अधिकारी सब इंस्पेक्टर महेंद्र व एएसपी गंगाराम पूनिया को कोर्ट में बयान देने के लिए बुला लिया। एएसपी गंगाराम ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि आरोपी के पक्ष में मात्र दो लोगों के हलफिया बयान लेकर निर्दोष ठहराना और दो जांच अधिकारियों, थानाध्यक्ष की वेरिफिकेशन को इग्नोर करना, अफीम सप्लाई करने के कथित आरोपी शमशेर सिंह को जांच में शामिल न करना व केस डायरी को एकतरफा करके आरोपी को निर्दोष बताना साफ दर्शाता है कि डीएसपी ने जान बूझकर सच्चाई जानते हुए भी दोषी को लाभ पहुंचाने की कोशिश की है। एएसपी गंगाराम पूनिया ने भी डीएसपी की कार्यप्रणाली के विरुद्ध कार्रवाई की सिफारिश लिखी।
अब अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुनील जिंदल की अदालत ने आईजी हिसार रेंज व एसपी को जजमेंट की कॉपी भेजकर कर सिफारिश की है कि ऐसे अधिकारी से तुरंत जांच का काम वापस ले लेना चाहिए। क्योंकि ऐसे व्यक्ति की जांच समाज को प्रभावित करती है। ऐसे अधिकारी जो तथ्यों को अपने हिसाब से तोड़मरोड़ कर दोषी को क्लीन चिट देते हैं, उनके विरुद्ध सरकार कड़ा कदम उठाए, जो कि एनडीपीएस में जांच करने वालों के लिए एक सबक की तरह काम करें। अदालत ने लापरवाह व गलती करने वाले डीएसपी के विरुद्ध एक माह में विभागीय या पैनल कार्रवाई कर रिपोर्ट अदालत में दाखिल करने के आदेश दिए हैं।