दूध उत्पादन में हरियाणा रहा राजस्थान से पीछे; देश में तीसरे नंबर पर हरियाणा
देसां म्ह देस हरियाणा, जित दूध-दही का खाणा...खान-पान की परिभाषा बताती प्रदेश की पहचान रही यह पंच लाइन दूध उत्पादन के आंकड़ों के हिसाब से सटीक नहीं बैठ रही। पशुपालकों के भैंसों के प्रति मोहभंग ने ऐसी स्थिति ला दी कि हरियाणा में दूध की धार कमजोर पड़ गई। जिसके परिणामस्वरूप पांच साल पहले तक दूध उत्पादन में पंजाब से होड़ लगाने वाला हरियाणा अब पड़ोसी राज्य राजस्थान से भी पीछे खिसककर तीसरे स्थान पर आ गया है।
पशुगणना के आंकड़ों को देखें तो 2012 में जहां प्रदेश में 61 लाख भैंसें थीं, वे 2019 में घटकर 43 लाख 76 हजार रह गई। सात साल में भैंसों की संख्या में 30 फीसदी की कमी आई और इसका सीधा असर दूध उत्पादन और उसकी उपलब्धता पर पड़ा। पांच साल पहले प्रदेश में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 1118 ग्राम थी, जो अब 1098 ग्राम रह गई है। इससे निजात पाने के लिए केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक, पशुपालन विभाग के अधिकारी और प्रदेश सरकार प्रयासरत हैं, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद पांच साल पुरानी स्थिति में भी नहीं पहुंच सके हैं।
पशुगणना के आंकड़ों के मुताबिक हरियाणा में भैंसोंं की संख्या में तेजी से गिरावट आई है। भैंस पालक प्रदेशों में सबसे बड़ी गिरावट हरियाणा में ही आई है। प्रदेश में करीब 30 प्रतिशत भैंस कम हो गईं। गिरावट में दूसरे स्थान पर पंजाब रहा। पंजाब में करीब 24 प्रतिशत भैंसे कम हुईं हैं। हालांकि पंजाब पर इस गिरावट का कम असर हुआ। क्योंकि वहां के किसानों ने विदेशी नस्ल की गायों की संख्या में बढ़ोतरी कर दूध का उत्पादन नहीं घटने दिया। लेकिन हरियाणा में दूध का उत्पादन भी घट गया। 2019-20 में हरियाणा में दूध का उत्पादन 117 लाख टन था जो 2020-21 में घटकर 113 लाख टन रह गया। इससे चिंतित केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने नस्ल सुधार के लिए काफी प्रयास किया तब जाकर पिछले साल हम पुरानी स्थिति में पहुंच सके।
केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान के पूर्व निदेशक और गुरु अंगद देव पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय लुधियाना के पूर्व कुलपति डाॅ. इंद्रजीत सिंह भैंसों की संख्या और दूध में कमी के लिए सरकार की नीतियाें के साथ ही पशुपालकों की सोच में बदलाव को जिम्मेदार मानते हैं। डाॅ. इंद्रजीत के मुताबिक भैंसों की संख्या कम होने के पीछे बड़ा कारण सरकार का देसी गायों पर अधिक फोकस होना है। सरकारी तंत्र ने गांवों में होने वाली भैंसों की दुग्ध प्रतियोगिताएं कम कर दी हैं। भैंसों के दूध पर किसानों को जो प्रोत्साहन राशि मिलती थी, उसे भी घटा दिया। इससे पशुपालकों की सोच बदली और गांव में भैंस पालने की होड़ कम हो गई।
पशुपालक डेयरियों से दूध खरीदने लगे। इनके अलावा धोखाधड़ी भी बड़ा कारण रहा। भैंस व्यापारियों ने बूस्टिन नामक प्रतिबंधित दवा का इस्तेमाल कर खरीदारों को फर्जी दूध दिखाया। इससे भैंस खरीदने के प्रति गलत धारणा विकसित हुई। पंजाब में भी दूध की यह धोखाधड़ी हरियाणा के साथ ही फैली थी, लेकिन वहां जांच की पुख्ता व्यवस्था कर ऐसा करने वालों की धरपकड़ की गई। दूध में मिलावट, सिंथेटिक दूध का चलन और दूध घटते ही भैंसों को निकाल देने की प्रवृत्ति ने भी गलत प्रभाव डाला।
मुर्राह मैन के नाम से विख्यात डॉ. इंद्रजीत मानते हैं कि सरकार को भैंसों की संख्या बढ़ाने के लिए फैमिली फार्मिंग को बढ़ावा देना चाहिए। किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए दूध प्रतियोगिताओं की संख्या बढ़ानी चाहिए और उसकी मॉनिटरिंग करनी चाहिए। पशुओं का नियमित टीकाकरण होना चाहिए। किसान प्रशिक्षण शिविरों की संख्या बढ़ानी चाहिए।
पशुगणना के आंकड़ों को देखें तो 2012 में जहां प्रदेश में 61 लाख भैंसें थीं, वे 2019 में घटकर 43 लाख 76 हजार रह गई। सात साल में भैंसों की संख्या में 30 फीसदी की कमी आई और इसका सीधा असर दूध उत्पादन और उसकी उपलब्धता पर पड़ा। पांच साल पहले प्रदेश में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 1118 ग्राम थी, जो अब 1098 ग्राम रह गई है। इससे निजात पाने के लिए केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक, पशुपालन विभाग के अधिकारी और प्रदेश सरकार प्रयासरत हैं, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद पांच साल पुरानी स्थिति में भी नहीं पहुंच सके हैं।
पशुगणना के आंकड़ों के मुताबिक हरियाणा में भैंसोंं की संख्या में तेजी से गिरावट आई है। भैंस पालक प्रदेशों में सबसे बड़ी गिरावट हरियाणा में ही आई है। प्रदेश में करीब 30 प्रतिशत भैंस कम हो गईं। गिरावट में दूसरे स्थान पर पंजाब रहा। पंजाब में करीब 24 प्रतिशत भैंसे कम हुईं हैं। हालांकि पंजाब पर इस गिरावट का कम असर हुआ। क्योंकि वहां के किसानों ने विदेशी नस्ल की गायों की संख्या में बढ़ोतरी कर दूध का उत्पादन नहीं घटने दिया। लेकिन हरियाणा में दूध का उत्पादन भी घट गया। 2019-20 में हरियाणा में दूध का उत्पादन 117 लाख टन था जो 2020-21 में घटकर 113 लाख टन रह गया। इससे चिंतित केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने नस्ल सुधार के लिए काफी प्रयास किया तब जाकर पिछले साल हम पुरानी स्थिति में पहुंच सके।
केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान के पूर्व निदेशक और गुरु अंगद देव पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय लुधियाना के पूर्व कुलपति डाॅ. इंद्रजीत सिंह भैंसों की संख्या और दूध में कमी के लिए सरकार की नीतियाें के साथ ही पशुपालकों की सोच में बदलाव को जिम्मेदार मानते हैं। डाॅ. इंद्रजीत के मुताबिक भैंसों की संख्या कम होने के पीछे बड़ा कारण सरकार का देसी गायों पर अधिक फोकस होना है। सरकारी तंत्र ने गांवों में होने वाली भैंसों की दुग्ध प्रतियोगिताएं कम कर दी हैं। भैंसों के दूध पर किसानों को जो प्रोत्साहन राशि मिलती थी, उसे भी घटा दिया। इससे पशुपालकों की सोच बदली और गांव में भैंस पालने की होड़ कम हो गई।
पशुपालक डेयरियों से दूध खरीदने लगे। इनके अलावा धोखाधड़ी भी बड़ा कारण रहा। भैंस व्यापारियों ने बूस्टिन नामक प्रतिबंधित दवा का इस्तेमाल कर खरीदारों को फर्जी दूध दिखाया। इससे भैंस खरीदने के प्रति गलत धारणा विकसित हुई। पंजाब में भी दूध की यह धोखाधड़ी हरियाणा के साथ ही फैली थी, लेकिन वहां जांच की पुख्ता व्यवस्था कर ऐसा करने वालों की धरपकड़ की गई। दूध में मिलावट, सिंथेटिक दूध का चलन और दूध घटते ही भैंसों को निकाल देने की प्रवृत्ति ने भी गलत प्रभाव डाला।
मुर्राह मैन के नाम से विख्यात डॉ. इंद्रजीत मानते हैं कि सरकार को भैंसों की संख्या बढ़ाने के लिए फैमिली फार्मिंग को बढ़ावा देना चाहिए। किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए दूध प्रतियोगिताओं की संख्या बढ़ानी चाहिए और उसकी मॉनिटरिंग करनी चाहिए। पशुओं का नियमित टीकाकरण होना चाहिए। किसान प्रशिक्षण शिविरों की संख्या बढ़ानी चाहिए।