जानें, कौन है तालिबान , कैसे करता है काम |

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जानें, कौन है तालिबान , कैसे करता है काम |

जानें, कौन है तालिबान , कैसे करता है काम |


अफगानिस्तान की जमीन को दशकों से जंग का मैदान बनाकर रखने वाले तालिबान ने खौफनाक ताकत हासिल कर ली है। तालिबान का उदय वर्ष 1990 के दशक में उत्तरी पाकिस्तान में हुआ जब अफगानिस्‍तान में सोवियत संघ की सेना वापस जा रही थी। इसके बाद तालिबान ने अफगानिस्‍तान के कंधार शहर का अपना पहला केंद्र बनाया। आज तालिबान ने वापस कंधार शहर की कमान अपने हाथ में ले ली है और एक बार फिर खून से सने इतिहास को याद दिलाया है। अफगानिस्तान की जमीन कभी सोवियत संघ के हाथ में थी और 1989 में मुजाहिदीन ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसी मुजाहिदीन का कमांडर बना पश्तून आदिवासी समुदाय का सदस्य- मुल्ला मोहम्मद उमर। उमर ने आगे चलकर तालिबान की स्थापना की। 

जानें, कौन है तालिबान , कैसे करता है काम |

तालिबान तलबा शब्द से बना है जिसका अर्थ छात्र होता है और ये तालिबान अफगानिस्तान और पाकिस्तान के देवबंदी मदरसे से निकले हुए छात्र हैं

पाकिस्तान इस बात से हमेशा इनकार करता रहा है कि तालिबान के उदय के पीछे उसका ही हाथ रहा है। लेकिन यह सभी जानते हैं कि तालिबान के शुरुआती लड़ाकों ने पाकिस्तान के मदरसों में शिक्षा ली। ताजा लड़ाई में भी पाकिस्‍तान तालिबान की पूरी मदद कर रहा है और इसी वजह से अफगानिस्‍तान की ओर से पाकिस्‍तान के खिलाफ प्रतिबंध की मांग उठ रही है। 'तालिबान' शब्द का पश्तून में मतलब होता है ‘छात्र’ और इससे संगठन के सदस्यों की ओर इशारा किया जा रहा था जिन्हें उमर का ‘छात्र’ माना गया। साल 1994 में ओमार ने इसी कंधार में तालिबान को बनाया था। तब उसके पास 50 समर्थक थे जो सोवियत काल के बाद गृहयुद्ध के दौरान अस्थिरता, अपराध और भ्रष्टाचार में बर्बाद होते अफगानिस्तान को संवारना चाहते थे। धीरे-धीरे यह पूरे देश में फैलने लगा। सितंबर 1995 में उन्होंने ईरान से लगे हेरात पर कब्जा किया और फिर अगले साल 1996 के दौरान कंधार को अपने नियंत्रण में लिया और राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया। इसके साथ ही राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी को कुर्सी से हटा दिया। रब्बानी अफगानिस्तान मुजाहिदीन के संस्थापकों में से एक थे जिन्होंने सोवियत ताकत का विरोध किया था। साल 1998 तक करीब 90% अफगानिस्तान पर तालिबान काबिज था।

शुरुआत में अफगानिस्तान के लोगों ने तालिबान का स्वागत और समर्थन भी किया। इसे मौजूदा अव्यवस्था के समाधान की शक्ल में देखा गया। फिर धीरे-धीरे कड़े इस्लामिक नियम लागू किए जाने लगे। चोरी से लेकर हत्या तक के दोषियों को सरेआम मौत की सजा दी जाने लगी। समय के साथ रुढ़िवादी कट्टरपंथी नियम थोपे जाने लगे। टीवी और म्यूजिक को बैन कर दिया गया, लड़कियों को स्कूल जाने से मना कर दिया गया, महिलाओं पर बुर्का पहनने का दबाव बनने लगा |

दुनिया की नजरों में तालिबान आया अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकी हमले के बाद। जब अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन 11 सितंबर, 2001 के आतंकी हमले की प्लानिंग कर रहा था, तालिबान ने उसे पनाह दे रखी थी। अमेरिका ने उससे ओसामा को सौंपने के लिए कहा लेकिन तालिबान ने इनकार कर दिया। इसके बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान में घुसकर मुल्ला ओमार की सरकार को गिरा दिया। ओमार और बाकी तालिबानी नेता पाकिस्तान भाग गए। यहां उन्होंने फिर से अफगानिस्तान लौटने की तैयारी शुरू कर दी।

पिछले साल फरवरी में अमेरिका और तालिबान ने ऐतिहासिक समझौता किया। इसमें अमेरिकी सेना को 14 महीने में अफगानिस्तान छोड़ना था। इसके अलावा उसे अलकायदा जैसे संगठनों को पनाह देना खत्म करना था। इस बीच तालिबान और अफगानिस्तान सरकार के बीच जंग खत्म करने के लिए बातचीत होनी थी जिसका ठोस परिणाम नहीं निकल सका। तालिबान आतंकियों से संपर्क खत्म करने का वादा भी नहीं निभा सका। अब अमेरिकी सेना के देश छोड़ने के साथ ही तालिबान की क्रूरता अपने चरम पर पहुंचने लगी है। पत्रकारों, ऐक्टिविस्ट्स, अधिकारियों को टार्गेट करके मारा जा रहा है।

बीबीसी की रिपोर्ट में NATO के आकलन के हवाले से दावा किया गया है कि तालिबान आज पहले से ज्यादा मजबूत होकर उभरा है। अब इसमें 85 हजार लड़ाके शामिल हैं। अफगानिस्तान का कितना हिस्सा पूरी तरह से उनके हाथ में है, यह समझना मुश्किल है लेकिन यह 20-30% तक हो सकता है। करीब 20 साल तक जंग के बाद अमेरिका जैसी महाशक्ति ने भी अपने हाथ यहां से वापस खींच लिए है और मुमकिन है तालिबान इसे अपनी जीत समझ रहा है। इसीलिए ताबड़तोड़ हिंसा मचाते हुए आगे बढ़ता जा रहा है।

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