पेपर लीक मामले पर मनोहर लाल का जवाब।।

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पेपर लीक मामले पर मनोहर लाल का जवाब।।

पेपर लीक मामले पर मनोहर लाल का जवाब।।


दरअसल ये मामला नौकरियों में बेईमानी करने की आपकी राजनीतिक सहमति और बेईमानी रोकने की हमारी 'मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति' के बीच संघर्ष का है।।

प्रतियोगी परीक्षाएं और भर्तियां इमानदारी से हों, ये निश्चित तौर पर एक गंभीर विषय है। क्योंकि हमारे युवाओं के भविष्य और हकदार को रोजगार देने से जुड़ा हुआ मामला है।
इस विषय पर खुलकर बहस भी होनी चाहिए और मंथन भी होना चाहिए।
 तमाम सदस्यों ने पेपर लीक को लेकर चिंता जाहिर की है और सरकार का इसको लेकर क्या रुख है?
 हम कौन-कौन से उपाय भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कर रहे हैं? इसकी जानकारी भी सदन के माध्यम से पूरे प्रदेश को देने का हमारा कर्तव्य बनता है।
लेकिन गंभीर सवाल ये है कि आखिर इस समस्या के जड़ में क्या है ?
इस तरह के प्रयास कौन लोग कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं?
 परंपरागत तौर पर हरियाणा में भर्तियों में भेदभाव उच्च स्तर पर राजनीतिक सहमति से पहले होता रहा है, इसलिए बहुत से युवाओं को अभी भी शत प्रतिशत यह विश्वास नहीं हो पाता कि सरकारी नौकरियां हासिल करने का कोई चोर दरवाजा भी है या नहीं है?
 समाज में बहुत सारे इस तरह के तत्व हैं , जो अभी भी चोर दरवाजे को लेकर अन्वेषण करते रहते हैं और भर्तियों की गोपनीयता को भंग करने का जुगाड़ करते रहते हैं ।।
रही बात युवाओं के भविष्य पर आप के आंसू बहाने की तो भर्तियों का पिछला आपका रिकॉर्ड यह दर्शाता है की पिछली सरकारों में जितनी भर्तियां हुई, वो सभी भर्तियां न्यायालय के दरवाजे तक गईं।
 यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट तक भी तमाम भर्तियां गई और सुप्रीम कोर्ट ने जब जब  अनियमितता पाई और उन भर्तियों को कैंसिल किया, तब तब खूब राजनीति भी हुई।
जिन्होंने युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ किया, उन्होंने ही बाद में बेरोजगार हुए युवकों को उकसाया, सड़कों पर बिठाया और अपनी राजनीति की।।
एक बड़ा आसान सा जवाब  आपका होता है कि सरकार ने ढंग से पैरवी नहीं की!
 जबकि सच्चाई ये है कि जो  भर्तियां अपने की उसके खिलाफ कोर्ट में वो लोग गए जिनके साथ बेईमानी हुई थी और इन भर्तियों को कैंसिल कोर्ट ने किया।
 सरकार को जो आदेश न्यायालय से मिलेगा, उसको पूरा करवाना ही पड़ेगा।
ये  न्यायिक व्यवस्था का तकाजा है।
इसलिए हमने तो न सिर्फ मेरिट के आधार पर 80 हजार के लगभग नई भर्तियां की बल्कि आप लोगों के द्वारा की गई गलत भर्तियां जिसमें चाहे गेस्ट टीचर हों या पीटीआई टीचर , सबको एडजस्ट भी किया।
 लगभग 20 हजार ऐसे युवा तो होंगे, क्योंकि जब कोर्ट से भर्तियां कैंसिल हुई, तब तक उन युवाओं की उम्र इतनी हो चुकी थी कि उनका जीवन बर्बादी के कगार पर था।। इसलिए मानवीय आधार पर और एक चुनी हुई सरकार के नाते उनकी चिंता करते हुए हमने उनको रोजगार किसी न किसी रूप में सुनिश्चित किया।।
 अब बात करते हैं कि नौकरियों और भर्तियों को लेकर जो संघर्ष पिछले 7 वर्षों से हरियाणा में चल रहा है।
 यह संघर्ष "परंपरागत बेईमानी की राजनीतिक सहमति" और पिछले 7 वर्षों में बेईमानी रोकने की मजबूत इच्छाशक्ति के बीच है।
इतने बड़े बदलाव की राह में ऐसी अड़चनें आएंगी।
 क्योंकि कई दशकों से चला आ रहा ये नेक्सस इतनी आसानी से टूटने वाला नहीं है।
 वो  किसी न किसी रूप में प्रयास करते रहते हैं कि भर्तियों की गोपनीयता में सेंध लगाई जाए और पेपर लीक के मामले इसी का परिणाम हैं।
 लेकिन हमारा भी एक दृढ़ संकल्प है कि आगे से ऐसी घटनाओं को सख्ती से रोका जाए, उन प्राइवेट एजेंसियों का चयन किया जाए जिनकी क्रेडिबिलिटी किसी भी हालत में बिकाऊ ना हो और दूसरी बात चाहे परीक्षाएं जितनी बार करानी पड़ेगी लेकिन अंत में भर्ती उन्हीं युवाओं की होगी जो वास्तव में नौकरी के हकदार होंगे।।
 लेकिन जो लोग व्यवस्था में इस तरह के भ्रष्टाचार में लिप्त हैं , उनसे कड़ाई से निपटा जा रहा है और इसके लिए कड़े कानून बनाने के बारे में भी सरकार गंभीरता से सोच रही है।
 हर हाल में इस पर नकेल लगाया ही जाएगा, ताकि एक स्वस्थ और मेरिट पर भर्तियों की जो परंपरा हरियाणा में शुरू हुई है, वो कायम रहे, बख्शा किसी को नहीं जाएगा और अंत में एंप्लॉयमेंट लेटर उसी युवा को मिलेगा जो वास्तव में हकदार होगा।।


बार-बार बेरोजगारी का डाटा देकर हरियाणा को बदनाम करने वाली एजेंसी का सच भी सदन के सामने रखा जाना चाहिए।।

# CMIE = Congress Manufactured Index Of Employment.


CMIE एक प्राइवेट लिमिटेड संस्था है, जिससे जुड़े लोग परोक्ष रूप से कोंग्रेस से न सिर्फ़ जुड़े रहे हैं, बल्कि उसके लिए  नीति निर्माण का काम भी करते रहे हैं।

CMIE एक घोर पूँजीवादी संस्था है, जो मुनाफ़ा कमाने के लिए भ्रस्ट से भ्रष्ट तरीक़ा अपनाने से भी नहीं कतराते।शायद CMIE को ऐसा करने की शिक्षा उनके कोंग्रेसी आकाओं से
मिलती है जो भ्रष्टाचार के पर्याय हैं।

कम्पनी के Director अजय साह UPA 2 शासन के दौरान 2011-14 के बीच 3000-4000 करोड़ रुपए के निफ़्टी घोटाले के प्रमुख मास्टरमाइंड के रूप में जाने जाते रहे हैं।
तात्कालिन वित मंत्री चिदम्बरम के करीबी अजय साह पर आरोप सही पाये जाने पर SEBI ने शेयर मार्केट में किसी भी तरह संलग्नता पर इसपर 2 साल का प्रतिबंध लगा दिया था।।उधर CBI और आयकर विभाग की जाँच में यह प्रमुख आरोपी भी है।

CMIE कोंग्रेस का एक प्रॉपगैंडा सेल की तरह कैसे काम करता है, यह इससे भी जगज़ाहिर होता है कि संस्था का MD महेश व्यास कोंग्रेस की घोषणा पत्र समिति का सलाहकार भी रहा है।

CMIE के आर्थिक और रोज़गार से जुड़े जिन आँकड़ों को लेकर कोंग्रेस् मोदी सरकार या हरियाणा सरकार को घेरती है, ये आँकड़े निर्माण का मुख्य कार्य महेश व्यास के निर्देशन में ही होता है।

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