महाराणा प्रताप की ये बातें कहती है उनकी बहादुरी की कहानी... आज महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि हैं. जानें उनसे जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में

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महाराणा प्रताप की ये बातें कहती है उनकी बहादुरी की कहानी... आज महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि हैं. जानें उनसे जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में

महाराणा प्रताप की ये बातें कहती है उनकी बहादुरी की कहानी... आज महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि हैं. जानें उनसे जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में


में राजपुताने का गौरवपूर्ण स्थान रहा है। यहां के रणबांकुरों ने देश, जाति, धर्म तथा स्वाधीनता की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने में कभी संकोच नहीं किया। उनके इस त्याग पर संपूर्ण भारत को गर्व रहा है। वीरों की इस भूमि में राजपूतों के छोटे-बड़े अनेक राज्य रहे जिन्होंने भारत की स्वाधीनता के लिए संघर्ष किया। इन्हीं राज्यों में मेवाड़ का अपना एक विशिष्ट स्थान है जिसमें इतिहास के गौरव बप्पा रावल, खुमाण प्रथम महाराणा हम्मीर, महाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा, उदयसिंह और वीर शिरोमणि ने जन्म लिया है।

महाराणा प्रताप की ये बातें कहती है उनकी बहादुरी की कहानी... आज महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि हैं. जानें उनसे जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में

सवाल यह उठता है कि महानता की परिभाषा क्या है। अकबर हजारों लोगों की हत्या करके महान कहलाता है और महाराणा प्रताप हजारों लोगों की जान बचाकर भी महान नहीं कहलाते हैं। दरअसल, हमारे देश का इतिहास अंग्रेजों और कम्युनिस्टों ने लिखा है। उन्होंने उन-उन लोगों को महान बनाया जिन्होंने भारत पर अत्याचार किया या जिन्होंने भारत पर आक्रमण करके उसे लूटा, भारत का धर्मांतरण किया और उसका मान-मर्दन कर भारतीय गौरव को नष्ट किया।
मेवाड़ के महान राजपूत नरेश महाराणा प्रताप अपने पराक्रम और शौर्य के लिए पूरी दुनिया में मिसाल के तौर पर जाने जाते हैं। एक ऐसा राजपूत सम्राट जिसने जंगलों में रहना पसंद किया लेकिन कभी विदेशी मुगलों की दासता स्वीकार नहीं की। उन्होंने देश, धर्म और स्वाधीनता के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया।
 
कितने लोग हैं जिन्हें अकबर की सच्चाई मालूम है और कितने लोग हैं जिन्होंने महाराणा प्रताप के त्याग और संघर्ष को जाना? प्रताप के काल में दिल्ली में तुर्क सम्राट अकबर का शासन था, जो भारत के सभी राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर मुगल साम्राज्य की स्थापना कर इस्लामिक परचम को पूरे हिन्दुस्तान में फहराना चाहता था। इसके लिए उसने नीति और अनीति दोनों का ही सहारा लिया। 30 वर्षों के लगातार प्रयास के बावजूद अकबर महाराणा प्रताप को बंदी न बना सका।

 
जन्म : महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 ईस्वी को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। लेकिन उनकी जयंती हिन्दी तिथि के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को मनाई जाती है। उनके पिता महाराजा उदयसिंह और माता राणी जीवत कंवर थीं। वे राणा सांगा के पौत्र थे। महाराणा प्रताप को बचपन में सभी 'कीका' नाम लेकर पुकारा करते थे। महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी संवत कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है।
राज्याभिषेक : महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुंदा में हुआ था। राणा प्रताप के पिता उदयसिंह ने अकबर से भयभीत होकर मेवाड़ त्याग कर अरावली पर्वत पर डेरा डाला और उदयपुर को अपनी नई राजधानी बनाया था। हालांकि तब मेवाड़ भी उनके अधीन ही था। महाराणा उदयसिंह ने अपनी मृत्यु के समय अपने छोटे पुत्र को गद्दी सौंप दी थी जोकि नियमों के विरुद्ध था। उदयसिंह की मृत्यु के बाद राजपूत सरदारों ने मिलकर 1628 फाल्गुन शुक्ल 15 अर्थात 1 मार्च 1576 को महाराणा प्रताप को मेवाड़ की गद्दी पर बैठाया।

महाराणा प्रताप की ये बातें कहती है उनकी बहादुरी की कहानी... आज महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि हैं. जानें उनसे जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में



उनके राज्य की राजधानी उदयपुर थी। राज्य सीमा मेवाड़ थी। 1568 से 1597 ईस्वी तक उन्होंने शासन किया। उदयपुर पर यवन, तुर्क आसानी से आक्रमण कर सकते हैं, ऐसा विचार कर तथा सामन्तों की सलाह से प्रताप ने उदयपुर छोड़कर कुम्भलगढ़ और गोगुंदा के पहाड़ी इलाके को अपना केन्द्र बनाया।
 
कुल देवता : महाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। उनके कुल देवता एकलिंग महादेव हैं। मेवाड़ के राणाओं के आराध्यदेव एकलिंग महादेव का मेवाड़ के इतिहास में बहुत महत्व है। एकलिंग महादेव महादेव का मंदिर उदयपुर में स्थित है। मेवाड़ के संस्थापक बप्पा रावल ने 8वीं शताब्‍दी में इस मंदिर का निर्माण करवाया और एकलिंग की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की थी।
 
महाराणा प्रताप जिस घोड़े पर बैठते थे वह घोड़ा दुनिया के सर्वश्रेष्ठ घोड़ों में से एक था। महाराणा प्रताप तब 72 किलो का कवच पहनकर 81 किलो का भाला अपने हाथ में रखते थे।
 
भाला और कवच सहित ढाल-तलवार का वजन मिलाकर कुल 208 किलो का उठाकर वे युद्ध लड़ते थे। सोचिए तब उनकी शक्ति क्या रही होगी। इस वजन के साथ रणभूमि में दुश्मनों से पूरा दिन लड़ना मामूली बात नहीं थी। अब सवाल यह उठ सकता है कि जब वे इतने शक्तिशाली थे तो अकबर की सेना से वे दो बार पराजित क्यों हो गए? इस देश में जितने भी देशभक्त राजा हुए हैं उसके खिलाफ उनका ही कोई अपना जरूर रहा है। जयचंदों के कारण देशभक्तों को नुकसान उठाना पड़ा है।
मेवाड़ को जीतने के लिए अकबर ने कई प्रयास किए। अकबर चाहता था कि अन्य राजाओं की तरह उसके कदमों में झुक जाए। महाराणा प्रताप ने भी अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया था। अजमेर को अपना केंद्र बनाकर अकबर ने प्रताप के विरुद्ध सैनिक अभियान शुरू कर दिया। महाराणा प्रताप ने कई वर्षों तक मुगलों के सम्राट अकबर की सेना के साथ संघर्ष किया। मेवाड़ की धरती को मुगलों के आतंक से बचाने के लिए महाराणा प्रताप ने वीरता और शौर्य का परिचय दिया।
प्रताप की वीरता ऐसी थी कि उनके दुश्मन भी उनके युद्ध-कौशल के कायल थे। उदारता ऐसी कि दूसरों की पकड़ी गई मुगल बेगमों को सम्मानपूर्वक उनके पास वापस भेज दिया था। इस योद्धा ने साधन सीमित होने पर भी दुश्मन के सामने सिर नहीं झुकाया और जंगल के कंद-मूल खाकर लड़ते रहे। माना जाता है कि इस योद्धा की मृत्यु पर अकबर की आंखें भी नम हो गई थीं। अकबर ने भी कहा था कि देशभक्त हो तो ऐसा हो।
अकबर ने कहा था, 'इस संसार में सभी नाशवान हैं। राज्य और धन किसी भी समय नष्ट हो सकता है, परंतु महान व्यक्तियों की ख्याति कभी नष्ट नहीं हो सकती। पुत्रों ने धन और भूमि को छोड़ दिया, परंतु उसने कभी अपना सिर नहीं झुकाया। हिन्द के राजाओं में वही एकमात्र ऐसा राजा है जिसने अपनी जाति के गौरव को बनाए रखा है।
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