नीति आयोग का पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में लाने का सुझाव ! जानिए क्या होगा असर

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नीति आयोग का पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में लाने का सुझाव ! जानिए क्या होगा असर

नीति आयोग का पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में लाने का सुझाव ! जानिए क्या होगा असर


पेट्रोल और डीजल पर केंद्र और राज्य सरकारों के टैक्स की दर कम करने की मांगों के बीच नीति आयोग ने इन दोनों को जीएसटी में शामिल करने का प्रस्ताव दिया है। पेट्रोल और डीजल के अलावा बिजली को भी जीएसटी के दायरे में लाने का प्रस्ताव आयोग ने रखा है। पेट्रोल और डीजल शुरू से ही जीएसटी के दायरे से बाहर हैं। अभी इन पर केंद्र सरकार उत्पाद शुल्क लगाती है और राज्य सरकारें वैट वसूलती हैं। अंग्रेजी दैनिक फाइनेंशियल एक्सप्रेस के अनुसार राज्यों को इन्हें जीएसटी के दायरे में लाने पर सहमत करने के लिए केंद्र सरकार कुछ वर्षों तक क्षतिपूर्ति का ऑफर दे सकती है। यानी अगर राज्यों को पेट्रोल, डीजल और बिजली पर जीएसटी से रेवेन्यू में किसी तरह की कमी आती है तो उसकी भरपाई केंद्र सरकार करेगी।

केंद्र-राज्य कोई टैक्स घटाने को तैयार नहीं

पेट्रोल और डीजल राज्यों के लिए रेवेन्यू का बड़ा स्रोत हैं। इसलिए राज्य सरकारें इन्हें जीएसटी से बाहर रखने पर अड़ी थीं। राज्यों ने अपनी जरूरत के अनुसार समय-समय पर इन पर वैट बढ़ाया है। कुछ मौकों पर उन्होंने इसमें कटौती भी की है। इन दिनों जब पेट्रोल और डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं तो राज्य केंद्र से उत्पाद शुल्क कम करने की मांग कर रहे हैं तो केंद्र का कहना है कि राज्य अपना वैट घटाएं।

जीएसटी संग्रह उम्मीद के मुताबिक नहीं

जीएसटी लागू करते वक्त कहा गया था कि इससे सरकारों का कर संग्रह बढ़ेगा जबकि वैसा हुआ नहीं। केंद्र ने इसके लिए जो क्षतिपूर्ति का वादा किया था उसे देने में भी उसने देरी की है। क्षतिपूर्ति का प्रावधान जून 2022 में खत्म हो जाएगा जिसे राज्य बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। हालांकि विशेषज्ञ जीएसटी संग्रह में ज्यादा बढ़ोतरी ना होने के लिए कर के ढांचे में गलतियों और टैक्स दरों में कटौती को जिम्मेदार मानते हैं।

जीएसटी से टैक्स में राज्यों का हिस्सा बढ़ेगा

पेट्रोल, डीजल और बिजली को जीएसटी के दायरे में लाने का राज्य विरोध कर सकते हैं क्योंकि तब उनके हाथ में कोई टैक्स नहीं रह जाएगा। अभी पेट्रोल और डीजल पर जितना टैक्स लगता है उसका 60 फ़ीसदी केंद्र को और 40 फ़ीसदी राज्यों को जाता है। इसे जीएसटी में शामिल करने पर केंद्र और राज्य का हिस्सा 50-50 फ़ीसदी हो जाएगा। इसके अलावा केंद्र के पास जो कर संग्रह होगा उसका भी आधा राज्यों को मिलेगा। यानी कुल संग्रह में राज्यों का हिस्सा तो बढ़ेगा लेकिन केंद्र का कम हो जाएगा।

रेवेन्यू न्यूट्रल रेट पर हो सकता है विवाद

नीति आयोग का मानना है कि इनपुट टैक्स क्रेडिट से ऑयल कंपनियों का मुनाफा बढ़ेगा, इससे सरकार को इनकम टैक्स के रूप में ज्यादा रकम मिलेगी। नीति आयोग ने वर्ष 2018-19 के आंकड़ों के आधार पर आकलन किया है अगर डीजल पर टैक्स की दर 247 फ़ीसदी रखी जाए (इनपुट क्रेडिट समेत) तो रेवेन्यू का ना तो नुकसान होगा ना फायदा। लेकिन 2019 के बाद केंद्र ने एक्साइज ड्यूटी में 130 फ़ीसदी की बढ़ोतरी की है। इसलिए रेवेन्यू न्यूट्रल रेट बहुत बढ़ जाएगा।

बिजली पर टैक्स की दर विभिन्न राज्यों में 0 से 25 फ़ीसदी (औसत 7.5 फ़ीसदी) तक है। 2018-19 के आकलन के आधार पर इसका रेवेन्यू न्यूट्रल रेट 16.6 फ़ीसदी बनता है। इसलिए इसे 18 फ़ीसदी जीएसटी स्लैब में रखा जा सकता है।

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