Sweet Dish: अगर मीठा खाने के है शौक़ीन, तो इस शहर की नंबर वन इमरती जरुर खाए

Sweet Dish: इमरती राजस्थान के करौली का सबसे खास और पसंदीदा मीठा पकवान है। वैसे तो यह खास पकवान पूरे शहर की हर मिठाई की दुकान पर 24 घंटे तैयार मिलता है। मगर शहर का बूरा – बताशा बाजार इमरती का बेताज बादशाह यानि इमरती के स्वाद का खजाना कहा जाता है। सुबह से देर रात तक इस बाजार में गरमा गरम इमरती की महक उड़ती ही रहती है। लेकिन इसी बाजार के अंदर पंचायती मंदिर के शिवशंकर मिष्ठान भंडार की इमरती का स्वाद इतना लाजवाब है कि इसे शहर की नंबर वन इमरती कहा जाता है। क्योंकि इस इमरती का स्वाद 50 साल से भी ज्यादा पुराना और इसको खासतौर से शुद्ध उड़द की दाल, देसी घी और पीतल के बर्तनों में तैयार किया जाता है।
मीठे पकवानों के दीवाने इस इमरती की सुगंध मात्र से खींचे चले आते हैं। इतना ही नहीं स्वाद से भरपूर इस इमरती का खासतौर से इस्तेमाल श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों के प्रसाद के लिए किया जाता है। करौली में बच्चों से लेकर हर उम्र के लोग इस देसी घी की इमरती के दीवाने हैं। तो आईए जानते हैं आखिर क्या कहना है इसके स्वाद के दीवानों का।
विशेष तौर से शुद्धता का रखा जाता है ख्याल
स्थानीय निवासी अनिल कुमार का इस इमरती के बारे में कहना है कि इस इमरती में खासतौर से शुद्धता का ख्याल रखा जाता है। पूरे शहर में 50 साल से भी ज्यादा पुरानी यह एक ऐसी इकलौती दुकान है। जिस पर शुद्ध, ताजा और देसी घी की इमरती मिलती है। स्वाद तो इस का ऐसा है कि मैं रोजाना दो-तीन इमरती तो खुद चलता फिरता खा जाता हूं। इसका स्वाद खाने में बहुत ही अच्छा और इसकी सिकाई यें कड़क और अच्छी चासनी में इसे तैयार करते हैं। पूरे शहर में ऐसी इमरती कहीं पर भी नहीं मिलती है। 25 किलोमीटर दूर से इमरती लेने आए गांव मेगराखुर्द के निवासी मोहन सिंह का कहना है कि इसकी सबसे बड़ी खासियत इसका स्वाद और यह देसी घी का माल है। कहीं और ऐसी इमरती करौली में नहीं मिल पाती है। उनका कहना है कि मिलावट एक परसेंट भी नहीं होने के कारण इसका स्वाद भी स्वादिष्ट लगता है।
50 साल से भी पुराना है इसका स्वाद
शिवशंकर मिष्ठान भंडार के अशोक गुप्ता के मुताबिक इस इमरती का स्वाद 50 साल से भी ज्यादा पुराना हैं। लगभग 50 साल से वह इमरती को बनाते आ रहे हैं। इससे पहले उनके पिताजी और दादाजी इस इमरती को बनाया करते थे। लेकिन आज भी इस इमरती का स्वाद वैसा की वैसा है। अशोक गुप्ता बताते हैं कि इसे शुद्ध उड़द की दाल में तैयार किया जाता है। इसे बनाने के लिए सबसे पहले उड़द की दाल को घंटे 2 घंटे पहले भिगोया जाता है। अच्छी तरह भीगने के बाद इसकी पिसाई की जाती है और फिर मैदा या अरारोट का टाका लगाकर इसको शुद्ध देसी घी में बनाया जाता है। अंत में चासनी में डालकर और ठंडी करके ग्राहकों को दी जाती है। गुप्ता बताते हैं कि इसकी सबसे बड़ी खासियत इसकी शुद्धता है, जो कई साल से बरकरार है इसलिए लोगों का विश्वास इस इमरती पर बना हुआ है। इस पुश्तैनी दुकान पर इमरती का भाव फिलहाल 340 रुपए प्रति किलो है। जो समय और महंगाई के अनुसार बढ़ता भी रहता है।