रोहतक में युवा कर रहे आत्महत्या,पीजीआई में हर दूसरे दिन आ रहे शव

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रोहतक में युवा कर रहे आत्महत्या,पीजीआई में हर दूसरे दिन आ रहे शव

रोहतक में युवा कर रहे आत्महत्या,पीजीआई में हर दूसरे दिन आ रहे शव


रोहतक में युवाओं में आत्महत्या के केस बढ़ते जा रहे हैं। पीजीआई में हर दूसरे दिन ऐसे केस आ रहे हैं या फिर शव, जिसमें या तो फांसी लगा कर या फिर जहर निगल कर युवा अपनी जान दे रहे हैं। अधिकतर केस 17 से लेकर 40 तक की आयु के लोगों के होते हैं। डॉक्टर इन आत्महत्याओं का कारण डिप्रेशन बता रहे हैं।  

डॉक्टरों का कहना है कि अवसाद में घिरा युवा अक्सर अपनी जान दे देता है। यह क्षणिक होता है। इस अवसाद के समय कोई उसे समझा सके या दर्द बांट सके तो वह बच सकता है। यही एक मनोवैज्ञानिक भी करता है। अवसाद के क्षण अकेला पड़ने वाला व्यक्ति खुद से हार जाता है। यही वजह है कि पीजीआई में हर दूसरे दिन आत्महत्या का औसतन एक केस आता है। संस्थान के फोरेंसिक साइंस विभाग के आंकड़े भी कुछ यहीं बया करते हैं।

मनोचिकित्सक मानते हैं कि स्पर्धा के दौर में तनाव व अवसाद बढ़ता जा रहा है। युवा वर्ग इस दौड़ और तनाव के बीच बुरी तरह पिस रहा है। बेहतर भविष्य के लिए अच्छे अंक लाने का दबाव रहता है तो पढ़ाई के बाद अच्छी नौकरी व सफलता की चाह। नतीजतन 20 से 40 वर्ष के बीच के लोग ज्यादा तनाव में रहते हैं। तनाव के कारण अवसाद में घिरे ये लोग अपनी ही जान ले देते हैं। इसमें 25 से 30 वर्ष के युवा अधिक होते हैं। 

पीजीआई के फोरेंसिक विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो यहां सबसे ज्यादा जानें जहरीले पदार्थ के सेवन से जाती हैं। इसके बाद फंदा, ट्रेन हादसे व झुलसने से मौत के मामले आते हैं। फोरेंसिक विभाग डॉ. एसके धतरवाल ने कहा कि पीजीआई में आत्महत्या का हर दूसरे दिन एक केस सामने आ रहा है। इसमें जहर से जान देने वाले सबसे ज्यादा हैं। इसके बाद फंदा लगाकर, ट्रेन से कटकर व आग में झुलसकर मरने वाले हैं। ऐसे लोगों को अवसाद या तनाव के समय समझा कर आत्महत्या की ओर बढ़ता कदम रोका जा सकता है। यही काम मनोचिकित्सक करते हैं।

डॉ. राजीव गुप्ता ने बताया कि किन्हीं कारणों से व्यक्ति स्वयं अपने जीवन का दुश्मन बनकर आत्महत्या का कदम उठाता लेता है। पिछले कुछ वर्षों में यह समाज के सामने बड़ी समस्या बनकर उभरी है। परिस्थितिवश जीवन को खत्म कर देेने का ख्याल जीने की लाख कोशिशों से कहीं अधिक मजबूत होता है। इसमें थोड़ा सा आवेश उन्हें जीवन खत्म करने के लिए विवश कर देता है। बदलती जीवनशैली एवं कोविड महामारी के चलते आम आदमी की दिनचर्या में काफी बदलाव आया हैै। इसकी वजह से लोग छोटी छोटी बात पर गुस्सा कर बैठते हैं। पारिवारिक परिस्थितियों के चलते लोग आत्महत्या कर रहे हैं। कभी डिप्रेशन में आकर तो कभी भावनात्मक होकर। यदि कुछ क्षणों तक व्यक्ति अपनी भावनाओं पर संयम रख ले तो आत्महत्या की संभावना कम हो जाती है। एक अध्ययन के अनुसार आत्महत्या करने वाले 48 प्रतिशत लोगों की सही समय पर काउंसलिंग उनके विचार को बदल सकती है। पीजीआईएमएस में लोगों को जागरूक करने के लिए कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। इस वर्ष की थीम कार्य के द्वारा आशा का संचार रखा गया है।

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