करनाल में कट रहीं अवैध कॉलोनियां : लैंड माफिया को नहीं किसी का डर -

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करनाल में कट रहीं अवैध कॉलोनियां : लैंड माफिया को नहीं किसी का डर -

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एडवोकेट पर कर चुके जानलेवा हमला


हरियाणा के जिले करनाल के ITI चौक के पास विशाल रिजोर्ट में लैंड माफिया ऐलान कर अवैध कॉलोनी काट रहा है। उन्हें प्रशासन का कोई डर ही नहीं। कुछ दिन पहले इसका विरोध करने वाले एक एडवोकेट पर लैंड माफिया ने हमला किया था, लेकिन इसके बाद भी विभाग हरकत में नहीं आया है।

अवैध कॉलोनियों की आड़ में एक सुनियोजित गिरोह काम कर रहा है। एंटी करप्शन फाउंडेशन के अध्यक्ष संजीव शर्मा ने बताया कि लैंड माफिया काले धन का प्रयोग करते हुए जमीन खरीदते हैं। कई अवैध कॉलोनियों में तो अधिकारियों और कुछ नेताओं के भ्रष्टाचार की रकम लगती है।
लोगों को सस्ते मकान का सपना दिखाते
इस रकम का लेन-देन नगदी में होता है। हर स्तर पर टैक्स चोरी होती। भोले-भाले लोगों को सस्ते मकान का सपना दिखा कर प्लाट बेच दिए जाते हैं। क्योंकि प्लाट की रजिस्ट्री कराने की बजाय शपथ पत्रों पर ही प्लाट ट्रांसफर कर दिया जाता है। इस तरह से सरकार का रजिस्ट्री की एवज में जो रेवेन्यू मिलता है, उसका सीधा नुकसान होता है।

अवैध कॉलोनी से बिगड़ता है शहर का मास्टर प्लान
हर शहर का एक मास्टर प्लान बनता है। इसे आधार बना कर ही आवासीय क्षेत्र चिह्नित किए जाते हैं। इसमें सड़क, बिजली, पानी, पर्यावरण समेत हर पहलु पर नजर रखी जाती है, लेकिन अवैध कॉलोनियां शहर का यह मास्टर प्लान बिगाड़ देती हैं। इस तरह से शहर का बेतरतीब विकास होता है। जिससे हर किसी को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

जमीन की रजिस्ट्री नहीं कराते
लैंड माफिया के काम करने का तरीका बहुत ही शातिराना होता है। वह किसान से से जमीन की रजिस्ट्री नहीं कराता। बयाने पर जमीन ले लेता है। इसके बाद प्लाट काट कर आगे खरीदने वालों को भी बयाने पर प्लाट बेच देता है। एक एकड़ कॉलोनी काटने में लैंड माफिया दो से तीन करोड़ रुपए जुटा लेता है। वह न तो सड़क, सीवरेज, लाइट का इंतजाम करता, बल्कि पार्क और इसी तरह के कम्युनिटी वेलफेयर के जमीन छोड़ता।

इसके विपरीत एक बिल्डर, यदि एक प्लाट में कॉलोनी काटता है तो सबसे पहले तो लाइसेंस लेना होता है। इसके लिए बकायदा से कॉलोनी का मास्टर प्लान देना होता है। इसके बाद वह सभी सुविधाएं खरीददार को देता है। यदि सुविधा नहीं देता तो उसके खिलाफ शिकायत भी की जा सकती है।

विकास का फंड खर्च होता है अवैध कॉलोनियों में इधर, अवैध कॉलोनियों में क्योंकि एक भ्रष्ट तंत्र काम करता है। इसलिए सरकार पर दबाव बनाया जाता है कि यह गरीब लोग हैं, अवैध कॉलोनी को वैध कर दिया जाए। इस आड़ में विकास का जो फंड शहर के विकसित और वैध इलाकों में खर्च होना चाहिए था, वह अवैध कॉलोनियां में सुविधा उपलब्ध कराने पर खर्च हो जाता है। इसलिए लैंड माफिया की करतूत, सरकार, प्लाट खरीदने वाले और शहर में हर किसी के लिए मुश्किल का सबक है।
कार्रवाई की बजाय सरकार दे रही है राहत
सरकार की नीति भी लैंड माफिया को शह दे रही है। सरकार ने नियमों पर खरी नहीं उतरने वाली कॉलोनियों को भी पक्का करने के लिए छूट दी है। सभी शहरी निकाय संस्थाओं को 31 दिसंबर तक इस संबंध में सदन से प्रस्ताव पारित करने का निर्देश दिया है। नियमों के अनुसार पहले कॉलोनी में 6 मीटर चौड़ी सड़क होनी चाहिए थी, लेकिन अब सरकार ने इसे 3 मीटर कर दिया है। सरकार इन कॉलोनियों को भी राहत देकर पक्का करने की योजना बना रही है।
पहले ये थी शर्त-
पहले अवैध कॉलोनी में 50-75 प्रतिशत प्लॉटों पर निर्माण कार्य होने की शर्त थी, लेकिन नए संशोधन के तहत इस शर्त को हटा दिया है। विभाग ने पहले 75 फिर 50, बाद में 25 प्रतिशत बसी कॉलोनियों को लेकर भी आवेदन मांगे। जानकारों का कहना है कि यह गलत है। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए। यदि सरकार इसी तरह से अवैध कॉलोनियां को छूट प्रदान कर नियमित करती रही तो फिर लाइसेंस लेकर जो बिल्डर कॉलोनी विकसित करते हैं, उनका तो धंधा ही चौपट हो जाएगा।

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