फैमिली प्लानिंग में पुरुषों को मिला नया ऑप्शन

महिलाओं की तरह पुरुष भी ले सकेंगे गर्भनिरोधक गोली
Male Contraceptive Pills : अनचाहे गर्भ को रोकने का दवाब अब तक महिलाएं झेल रही थी। नसबंदी के बाद भारतीय महिलाएं सबसे ज्यादा गर्भनिरोधक दवाओं पर निर्भर हैं। अमेरिकी मेडिकल एजेंसी ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ’ की हाल ही की रिसर्च के अनुसार अब पुरुषों के लिए गर्भनिरोधक दवाएं बना ली गई है। ये दवा खाने के बाद संबंध बनाने के बावजूद महिलाएं प्रेग्नेंट नहीं होंगी।
रिसर्च में किया गया यह दावा
प्रेग्नेंसी में स्पर्म का रोल होता है कि वो मूव कर फीमेल रिप्रोडेक्टिव ट्रैक्ट तक पहुंचता है। इस काम को सफल बनाने में एडेनिल साइक्लेज (एसएसी) नाम के एंजाइम का मेन रोल रहता है। इस पिल्स को खाने के बाद ये एंजाइम ब्लॉक हो जाएगा। दो-तीन साल पहले इंजेक्शन का क्लिनिकल ट्रायल किया गया। यह सफल भी रहा। रिसर्चर्स ने दावा किया था कि यह इंजेक्शन पुरुषों की कॉन्ट्रासेप्शन का बेहतर ऑप्शन साबित होगा। इस इंजेक्शन को 300 पुरुषों पर टेस्ट किया गया जिससे पुरुषों को कोई साइड इफेक्ट नहीं हुआ।
मेल कॉन्ट्रसेप्टिव पर पहले भी हुई हैं रिसर्च
वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में एक कंपनी ने ह्यूमन ट्रायल किए। उसका प्रिंसिपल अभी वाले पिल्स के प्रिंसिपल से अलग है। एक ऐसा पॉलिमर मैटीरियल बनाया गया जिसे पुरुषों के स्पर्म ट्रांसफर करने वाली नली में इंजेक्ट किया जाता है। इस नली से स्पर्म पुरुष के प्राइवेट पार्ट तक नहीं पहुंच पाता। इससे कोई हॉर्मोनल बदलाव नहीं होता।
11Beta MNTDC नाम की पिल्स बनाई गई थी। यह स्पर्म प्रोडक्शन का अमाउंट कम कर देता है। इसके साथ थोड़ी-बहुत प्रॉब्लम हुई थी। इसी तरह स्पर्म के स्विम को रोकने के लिए भी एक sAC बनाई गई थी। 18 अगस्त 1960 में अमेरिका ने पहली बार महिला कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स यानी गर्भ निरोधक गोली बनाई।
दुनिया की पहली गर्भ निरोधक गोली
दुनिया की पहली गर्भ निरोधक गोली का नाम enovid था। इसे अमेरिका में एंटी बेबी पिल्स कहा जाता था। भारत में पहली बार गर्भनिरोधक गोलियाें का चलन 1950 में शुरू हुआ। इन गोलियों को अगर कोई महिला रेगुलर खा रही है तो प्रेग्नेंट होने की संभावना केवल 1 प्रतिशत रहती है। वहीं अगर कोई महिला इसे महीने में पांच से छह दिन खाना भूल जाए तो प्रेग्नेंसी की संभावना 9 प्रतिशत बढ़ जाती है।
IUD बनाने में 100 साल से ज्यादा का समय लगा
नसबंदी के लिए IUD बनाने में 100 साल से ज्यादा का समय लगा। इसके लिए वैज्ञानिकों ने महिलाओं के कोख में रबर, कांच और धातु की डिवाइस लगाकर रिसर्च की। इसे स्टेम पसरीज कहा जाता है। प्राचीन मिश्र में कॉन्ट्रासेप्टिव बनाने के लिए भेड़ की आंत से बने कंडोम प्रयोग में लाए जाते थे।
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