कुरुक्षेत्र : अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में विभिन्न राज्यों के लोकनृत्यों ने ब्रह्मसरोवर घाट की बदली फिजा

सुबह से देर शाम तक ब्रह्मसरोवर के घाटों पर अलग-अलग राज्यों की संस्कृतिक रंग पर्यटकों को देखने को मिले तो जमकर खरीददारी भी की। शिल्पकारों से लेकर लोक कलाकार व पर्यटकों में भरपूर उत्साह बना रहा। विभिन्न राज्यों की कला के संगम के बीच हर कलाकार अपने-अपने राज्य की कला का बखूबी बखान कर रहा है। कलाकारों का कहना है कि आज के आधुनिक जमाने में भी उन्होंने अपनी कला को जिंदा रखा है, अपनी कला को विदेशों तक पहुंचा रहे हैं।
महोत्सव में कलाकारों द्वारा उत्तराखंड के छपेली, पंजाब के गटका, हिमाचल प्रदेश के गद्दी नाटी, राजस्थान के बहरुपिए, पंजाब के बाजीगर, राजस्थान के लहंगा, मंगनीयार व दिल्ली के भवई नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी जा रही है। यह कलाकार गीता महोत्सव पर 15 दिसंबर तक लोगों को अपने-अपने प्रदेशों की लोक कला के साथ जोड़ने का प्रयास करेंगे।
शिल्पकार अपने साथ बांस से बने घर की सजावट का सामान फ्रूट बास्केट, फ्लावर पोर्ट, दीवार सिनरी, कप प्लेट, वॉल हैंगिंग, टेबल लैम्प, बांस से बनी पानी की बोतल इत्यादि सामान लेकर आए हैं। यह सब सामान वे असम में बांस से बनाते हैं तथा इस सामान को बनाने के लिए कई लोग काम करते हैं। वे अपनी इस हस्त शिल्पकला से दूसरे लोगों को रोजगार के अवसर भी प्रदान करते हैं। इनकी कीमत 50 रुपये से लेकर एक हजार रुपये तक है तथा वे अपनी इस कारीगिरी को दूसरे कई राज्यों में भी दिखाते हैं और पर्यटक इनकी जमकर खरीदारी कर रहे हैं।
महोत्सव में राजस्थान की लोक कला कालबेलियों का बीन-बाजा की धुनें भी पर्यटकों को आकर्षित कर रही है।